हाँ वो तो है। ये सोशल मीडिया का 'डेमोक्रेटाइज़शन' जैसा है।
किसी भी चीज में जब कुछ नया आता है तो सबसे पहले नॉवेल यूज़र्स होते हैं।
क्योंकि कुछ नया करना साहसिक होता है, इन जेनरल उनमें कुछ खास होता है।
बाद में आने वाले दूसरों की देखा-देखी आते हैं; 'कमिटेड' नहीं होते। सोशल मीडिया अब 'बेल कर्व' की चोटी पर है शायद।
किसी भी प्रोडक्ट या सर्विस की तरह का ही एक्सपीरियंस है इसका भी.
और प्रसिद्धि पायी या स्ट्रॉन्ग वीमेन का क्या कहना - नंबर एक 'टेररिस्ट' वही हैं आज दुनिया में। :)
आजकल माहौल ऐसा बन गया है कि अगर कोई महिला जेंडर इशू सब्जेक्ट पर कुछ बोले तो लोग मान लेते हैं कि जरूर पुरुषों के खिलाफ ही लिखा होगा। :) समय लगेगा चीजें सेटल डाउन होने में।
आज का पुरुष डरा हुआ, भौचक्का है; सारा गेम समझ नहीं पाया है और समझना भी नहीं चाहता फ़िलहाल।
पूरा मामला मुझे नहीं मालूम पर इमेज में लिखा पढ़कर सटायर / व्यंग्य समझ में आता है।
चरित्र बड़ी चीज है।
जब नेताजी सुभाष बोस हिटलर की जर्मनी से हाथ मिलाने चले तो किसी ने पूछा की ऐसा कैसे - हिटलर का चरित्र क्या है और आपका क्या?
चमड़ी मोटी करने के प्रयास का अंत बुरा हुआ या भला ये लोग डिस्कस कर सकते हैं।
बॉलीवुड का सारा कचरा अब आपके दिमाग में जा रहा है।
दुनिया की सारी पुस्तकें पढ़ चुके?
कितना टाइम है आपके पास - जॉब, कुकिंग, फेसबुकिंग और फिर भी मूवीज का टाइम।
कहाँ से लाते हो इतना टाइम?
पर वीकेंड में भी मॉल जाकर देखते हो मूवीज
हर मूवी में सिर्फ प्यार प्यार होता है; मुंबई के सी बीच पर लोफर लड़कों वाला टपोरी प्यार; उसी को अलग अलग तरह के कपडे पहनाकर दिखाते हैं अलग अलग फिल्मों में. बस सब लड़के लड़कियों को बिगाड़ने का ठेका ले रखा है इस इंडस्ट्री ने
No comments:
Post a Comment